Tuesday, February 20, 2018

मैं कल से तुम्हें भूल जाऊँगा

चार साल होने को आए हैं,
उस दिन को जिस दिन,
मैंने तुम्हें खो दिया था |

अभी तक वो दिन, वो लम्हें, 
मेरे अंदर ज़िंदा हैं,
जब मेरे साथ तीन साल बिताने के,
बस दो दिन बाद,
तुम, उसके हाथों में हाथ डाले,
मेरे सामने घूमा करती थीं |

तुम्हारे और उसके वो जो,
कुछ संवाद मैंने पड़े थे,
वो मुझे आज भी,
शब्द-दर-शब्द याद हैं |

तब, जब मैं मानसिक रोगी सा हो गया था,
मैं नींद का पता भूल चुका था,
और भूख भी कुछ खास लगती नहीं थी,
तब तुम इतना भी ना कर सकीं,
कि मेरी इस हालत को और ना बढ़ातीं |
तुम तो जैसे मेरे सभी ज़ख्मों को,
एक खंजर लेकर जितना हो सके,
उतना गहरा कर देना चाहती थीं |

लेकिन उस बेबसी भरे दौर में भी,
मैं अकेला ना था |
तुम्हारे जाने के बाद,
तुम्हारी यादें तो थीं ही,
साथ में हर पल चुभते,
मुझे तोड़ कर रख देने वाले,
तुमसे जुदाई के एहसास ने भी,
मेरा साथ ना छोड़ा था |

ख़ैर! ये सब बातें अब पुरानी हो गई हैं |

मैं उस दौर से अब निकल चुका हूँ |
अब तो उस दर्द ने भी,
काफ़ी हद तक मेरा साथ छोड़ दिया है |

एक अरसा हो गया है,
जब तुम्हारे नाम का कतरा,
मेरी आँखों से नहीं निकला |
ज़िन्दगी में कई मुकाम पा चुका हूँ मैं,
मगर ये कम्बख्त तुम्हारा ख़याल,
अब भी रोज़ मुझसे होकर गुज़रता है |

तीन बरस हो गए हैं तुमको देखे हुए,
तुम कहाँ हो, कैसी हो,
अब क्या करती हो,
खुश हो या नहीं,
ऐसे कई सवालों के जवाबों के लिए मैं,
अक्सर तड़पा करता हूँ |

और ना जाने क्यूँ,
आज भी जब मैं किसी नए से मिलता हूँ,
कोशिश करता हूँ तुम्हें भुला देने की,
एक नयी शुरूआत करने की,
तुम... तुम मुझे रोक लेती हो |

तुम मेरी ज़िन्दगी से तो चली गयीं,
ना जाने मेरे ज़हन से क्यूँ नहीं गयीं |

लेकिन अब बस बहुत हुआ!
मैंने तय कर लिया है,
कि मैं तुम्हें भूल जाऊंगा |

नहीं! रुको! 
बस आज के दिन और याद कर लेता हूँ |
मैं कल से तुम्हें भूल जाऊँगा |