Friday, May 4, 2018

खत

अलमारी में मेरी किताबों के नीचे से,
आज कुछ पन्ने मिले मुझे |
अरे ये तो वही खत हैं,
वही तुम्हारी खूबसूरत लिखावट,
हमारे सुहाने, और मुश्किल पलों को,
समेटते हुए वही कुछ अक्षर हैं |
मैं फिर एक बार बैठ गया,
उस समय को दोबारा जीने के लिए,
जब ज़िन्दगी, ज़िन्दगी ही थी,
जब मैं दिल से हँसा करता था,
जब अगली सुबह का इंतज़ार रहता था मुझे,
वो वक़्त, जब तुम थी मेरी ज़िन्दगी में |
ये खत अपने में बहुत कुछ संजोए हैं |
ज़िन्दगी भर साथ निभाने के तुम्हारे वादे,
मेरे वो कई नाम जिनसे,
तुम मुझे पुकारा करती थीं,
तुम्हारी मुस्कुराहट, और तुम्हारा गुस्सा,
तुम्हारा वो प्यार, और तुम खुद,
कुछ है क्या हमसे जुड़ा,
जो इन शब्दों में ना मिले?
लड़कपन का वो निश्चल प्यार है इन पन्नों में,
जो अब शायद मुझे ढूंढने से भी ना मिलेगा |
मगर इस सब के बावजूद,
आज पहली दफा ऐसा हुआ,
कि ये खत पड़ते हुए,
मेरी आँखें नम ना हुई हों |
मैं जिन खतों की दो पंक्तियाँ,
भी ना पढ़ पाता था,
आज वही खत मैंने पूरे पढ़ डाले |
तो क्या मैं तुम्हें अब भूलने लगा हूँ?
हाँ, शायद, मैं तुम्हें भूलने लगा हूँ |