Thursday, September 28, 2017

दौड़ती ज़िन्दगी....

तो जनाब देखिए, बात कुछ ऐसी है कि ये जो ज़िन्दगी है ना, ये एक बिगड़े हुए बच्चे की मानिंद हो गयी है | मेरी बात बिल्कुल नहीं सुनती | जब देखो इधर-उधर भागती रहती है, और मैं इसके पीछे पीछे इस कोशिश में भागता रहता हूँ कि इसको मना लूँ और अपने हिसाब से इसको चलाऊँ | बस इसी कोशिश में सुबह से शाम और शाम से अगली सुबह हो जाती है और मुझको पता भी नहीं लगता | दिन हफ्तों में बदल जाते हैं, हफ्ते महीनों में और महीने सालों में, पर मैं हूँ कि बस, इसके पीछे भागता ही रहता हूँ |

खैर, जिस तरह बच्चे थक जाते हैं ना बहुत देर भागने के बाद, शायद ये भी थक जाएगी एक दिन और मेरे पास आकर बैठेगी मेरी कहानियाँ सुनने के लिए | वो कहानियाँ जिनमें ज़िक्र तो इसी का होगा | हाँ आप लोगों के रूप में कुछ दूसरे किरदार भी होंगे, लेकिन कहानी तो इसके इर्दगिर्द ही घूमेगी | 

तब तक, तब तक तो बस वही रोज़मर्रा की तरह इस keyboard पर उंगलियां चलाते हुए या हाथ में कलम लिए हुए कुछ लिखता जाऊंगा, कभी code तो कभी कहानी, कविता, या कोई नज़्म, ये सोचते हुए कि शायद मैं अपने सपनों को पूरा करने की तरफ चल रहा हूँ |

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